फिल्म रिव्यू: बरकरार है 'शेरनी' विद्या की दहाड़

सैय्यद अबू साद

मुंबई। विद्या बालन की ’शेरनी’ एक अलग ही दुनिया की फिल्म है। न तो इसकी कहानी में ग्लैमर है और न फॉर्मूला फिल्मों के मसाले और न ही किसी रैपर या म्यूजिक अरेंजर का संगीत। यहां सब कुछ खालिस देशी है। विद्या बालन ही मौजूदा अभिनेत्रियों में ऐसी फिल्म कर भी सकती हैं। ‘शेरनी’ सीधे आपको ड्राइंग रूम से उठाकर रायसेन, बालाघाट और औबेदुल्लागंज के जंगलों में रख देती है। वीक एंड पर बारिश की बूंदों के साये में सुकून से चाय-पकौड़ों के साथ वेबसीरीज पर इसका लुत्फ लिया जा सकता है...

रिव्यू फिल्म: शेरनी

कलाकार: विद्या बालन, बृजेंद्र काला, शरत सक्सेना, मुकुल चड्ढा, इला अरुण और विजय राज आदि।

निर्देशक: अमित मसुरकर

लेखक: आस्था टिकू, यशस्वी मिश्रा, अमित मसुरकर

ओटीटी प्लेटफार्म: प्राइम वीडियो

रेटिंग: 3.5 स्‍टार  

घने जंगल के बीच ढलती धूप, चिड़ियों की चहचहाहट, कीड़ों की भनभनाहट, पत्तियों की सरसराहट, पक्षियों और जानवरों की अलग-अलग आवाजें यह सब आपको जंगल के करीब लेकर जाती हैं। बतौर डायरेक्टर अमित मसूरकर दर्शकों को 2 घंटे 10 मिनट तक बांधे रखने में सफल हुए हैं। अमित मसुरकर ने खूबसूरत जंगल को दिखाते हुए एक जटिल कहानी बुनी है। वह शेरनी के माध्यम से ’आदमी बनाम जानवर’ की लड़ाई को शानदार तरीके से पेश करते हैं। आस्था टिक्कू ने स्क्रीनप्ले को बड़ी सावधानी से पूरे विस्तार में सामने रखा है। यह न सिर्फ विद्या के मन और उसकी चाहत को दिखाता है, बल्कि वन विभाग के कामकाज के साथ-साथ यह भी समझाने की कोशिश में सफल रहते हैं कि कि गांव और जंगल कैसे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सिनेमेटोग्राफर राकेश हरिदास के कैमरे ने कमाल का काम किया है। अनीश जॉन का साउंड डिजाइन भी कैमरे का साथ देता है। बेनेडिक्ट टेलर और नरेन चंदावरकर का बैकग्राउंड स्कोर कहानी में घुले रहस्य को प्रभावी बनाता है। फिल्म में सिर्फ एक गाना है, जो सही समय पर सही चोट करने लिए काफी है।

विद्या बालन ने ऐक्टिंग से किया प्रभावित   

फिल्म में विद्या से उनका एक सहयोगी कहता है, ’आप 100 बार जंगल में जा सकते हैं और शायद एक बार बाघ को देख सकते हैं, लेकिन बाघ ने आपको 99 बार देखा है। यह डायलॉग अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि इंसान जंगल में घुसे हैं। जानवरों का तो वो घर है। वहीं वहां के असली मालिक हैं। विद्या बालन एक बार फिर पर्दे पर अपनी ऐक्टिंग से प्रभावित करती हैं। वह कमजोर दिख सकती हैं, लेकिन उनकी सोच शक्तिशाली है। वह शांत हैं, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प, जुनून और धैर्य आपको उनकी ओर खींचता है। विद्या ज्यादा बोलती नहीं हैं, लेकिन उसकी आंखें गुस्सा जाहिर करती हैं।

सेक्सिज्म  पर दिया जोर

विद्या बालन ने इस फिल्म के जरिए एक बार फिर सेक्सिज्म यानी महिलाओं को लेकर पूर्वाग्रहों को दिखाने का काम किया है। विजय राज, बृजेंद्र कला, नीरज काबी, समपा मंडल, शरत सक्सेना ने भी अपने काम को सहज तरीके से किया है। सत्यकाम आनंद भी अपने किरदार में छाप छोड़ते हैं।

कहानी में जबर्दस्‍त ग्लैमर 

विद्या बालन ही मौजूदा अभिनेत्रियों में ऐसी फिल्म कर भी सकती हैं। न तो इसकी कहानी में ग्लैमर है, न फॉर्मूला फिल्मों से मसाले हैं और न ही किसी रैपर या म्यूजिक अरेंजर का संगीत। यहां सब कुछ खालिस देशी है। फिल्म ‘शेरनी’ सीधे आपको आपके ड्राइंग रूम से उठाकर रायसेन, बालाघाट और औबेदुल्लागंज के जंगलों में रख देती है। ये वे लोग हैं जो शेर की आंख में देखकर ये बताने का दावा करते हैं कि वह आदमखोर है कि नहीं। शहरों में जब घरों में बंदर घुसते हैं तो सब परेशान होते हैं। लेकिन, ये कम ही सोचते हैं कि उनके शहर फैलते फैलते जंगलों तक आ चुके हैं। 

रोमांचक सफर की कहानी

हालांकि, कुछ हिस्सों में फिल्म की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ती है। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म में बाघिन की तलाश शुरू होती है, यह जंगल की पगडंडियों से होते हुए एक रोमांचक सफर पर निकल जाती है। फिल्म में कई जगहों पर हंसी-ठिठोली के बहाने कटाक्ष करने का भी प्रयास किया गया है। आखिर में वन्यजीव संरक्षण और ईकोसिस्टम में बैलेंस बनाए रखने के बारे में मसुरकर की यह फिल्म एक संदेश दे जाती है। ’शेरनी’ एक इंटेंस फिल्म है। रोमांचक है। इसे जरूर देखा जाना चाहिए। 

अलग ही दुनिया की फिल्‍म 

यदि आप बॉलिवुड में आम तौर पर दहाड़ मारने वाली फिल्मों की उम्मीद लगाए बैठे हैं, तो यह आपको निराश कर सकती है। ’शेरनी’ की अपनी खूबसूरती है और वह उसी में सहज है। ये अलग ही दुनिया की फिल्म है। इस दुनिया की फिल्म में पैदल चलने वाला ही रेस जीतता है। आस्था टिकू की पटकथा अपने हिसाब से बहती है। हां, संपादन चुस्त करके फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी, लेकिन धीमे धीमे बहने वाली नदियों का भी अपना अलग सौंदर्य है। ओटीटी प्‍लेटफार्म पर एक खास बात जरूर है कि आप यहां अपने परिवार के साथ आराम से फिल्म का मजा ले सकते हैं। वीकएंड पर बारिश की बूंदे के साये में सुकून से चाय पकौड़ों के साथ इसका एक बार लुत्फ लिया जा सकता है।

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